
पिता की मौत के बाद कैसे कौटिल्य बन गया चाणक्य

आचार्य चाणक्य को ही कौटिल्य, विष्णुगप्त और वात्सायन कहते हैं। उनका जीवन बहुत ही कठिन और रहस्यों से भरा हुआ है। चाणक्य के जीवन को जानने से यह पता चलता है कि कैसे एक अनाथ बालक अपने दम पर मगध साम्राज्य ही नहीं संपूर्ण भारत का अप्रत्यक्ष रूप से शासक बन गया। चाणक्य का जीवन बचपन से लेकर अंत तक संघर्ष भरा रहा लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उनके पिता का नाम चणक था। चणक मगध के राजा से असंतुष्ठ थे। चणक किसी भी तरह महामात्य के पद पर पहुंचकर राज्य को विदेशी आक्रांताओं से बचाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने अपने मित्र अमात्य शकटार से मत्रंणा कर धनानंद को उखाड़ फेंकने की योजना बनाई। परंतु एक गुप्तचर के द्वारा महामात्य राक्षस और कात्यायन को इस षड्यंत्र का पता लग गया।
उसने मगध सम्राट घनानंद को इस षड्यंत्र की जानकारी दी। चणक को बंदी बना लिया गया और राज्यभर में खबर फैल गई कि राजद्रोह के अपराध मे एक ब्राह्मण की हत्या की जाएगी। चणक के किशोर पत्रु काैिटल्य को यह बात पता चली तो वह चिंतित और दुखी हो गया। चणक का कटा हुआ सिर राजधानी के चौराहे पर टांग दिया गया। पिता के कटे हुए सिर को देखकर कौटिल्य की आंखों से आंसू टपक रहे थे। उस वक्त कौटिल्य की आयु 14 वर्ष थी।
रात के अंधेरे में उसने बांस पर टंगे अपने पिता के सिर को धीरे-धीरे नीचे उतारा और एक कपड़े में लपेट कर चल दिया।
अकेले पुत्र ने पिता का दाह-संस्कार किया। तब कौटिल्य ने गगंI का जल हाथ में लेकर शपथ ली - हे गंगें, जब तक हत्यारे धनानंद से अपने पिता की हत्या का प्रतिशोध नहीं लूंगा तब तक पकाई हुई कोई वस्तु नहीं खाऊंगा। जब तक महामात्य के रक्त से अपने बाल नहीं रंगं लूंगा तब तक यह शिखा खुली ही रखूंगा। मरेे पिता का तर्पण तभी पूर्ण होगा, जब तक कि हत्यारे धनानंद का रक्त पिता की राख पर नहीं चढ़ेगा . हे यमराज ! धनानंद का नाम तुम अपने लेख से काट दो । उसकी मृत्यु का लेख अब मैं लिखूंगा। तक्षशिला में विष्णु गुप्त यथार्थ चाणक्य ने न केवल छात्रए कुलपति और बड़े . बड़े विद्यानो को अपनी ओर आकर्षित किया बल्कि उसने पडोसी राज्य के राजा पोरस से भी अपना परिचय बढ़ा लिया। सिकंदर के आक्रमण के समय चाणक्य ने पोरस का साथ दिया। कुटिलया उर्फ़ विष्णु गुप्त यथार्थ चणक पुत्र चाणक्य ने तब चन्द्रगुप्त को शिक्षा और दीक्षा देने के साथ ही भीलए आदिवासी और वनवासियों को मिलकर एक सेना तैयार की और धनानंद के साम्राज्य को उखाड फेख्कर चन्द्रगुप्त को मगध का सम्राट बनाया। बाद में चन्द्रगुप्त के साथ ही उसके पुत्र बिन्दुसार और पौत्र सम्राट अशोक को भी चाणक्य ने महामंत्री पद पर रहकर मार्गदर्शन दिया ।